पंजाब मेल ने पूरे किए यात्रा के 110 साल,1980 में बादशाहपुर स्टेशन शुरू हुआ था ठहराव

न्यूज़ व विज्ञापन के लिए संपर्क करें सैय्यद मोहम्मद कुमैल मोबाइल नंबर 7518866187पंजाब मेल ने पूरे किए यात्रा के 110 साल,1980 में बादशाहपुर स्टेशन शुरू हुआ था ठहराव

अमृतसर से हावड़ा तक चलने वाली भारतीय रेलवे की सबसे पुरानी ट्रेनों में से एक पंजाब मेल ने अपने 109 साल की यात्रा पूरी कर ली। एक जून 2022 को यह 110वें साल में प्रवेश कर गई है। एक जून 1912 को 05 अप और 06 डाउन नंबर प्लेट के साथ हावड़ा- लाहौर "कलकत्ता मेल" के रूप में लाहौर रेलवे स्टेशन से अपना संचालन शुरू किया। आजादी के पूर्व तक यह ट्रेन लाहौर से हावड़ा तक जाती थी इसे कलकत्ता मेल के नाम से जाना जाता था। हालांकि स्वतंत्रता के बाद यह केवल हावड़ा से अमृतसर तक गई और ट्रेन का नाम भी बदलकर अब "पंजाब मेल" कर दिया गया है विभाजन के पूर्व की अवधि में देश की सबसे तेज चलने वाली ट्रेनों में पंजाब मेल भी शामिल था। 1990 के दशक में ट्रेन नंबरिंग के युक्तिकरण के साथ पंजाब मेल ने अपनी 5 अप / 6 डाउन नंबरिंग खो दी और अब हावड़ा से 13005 और अमृतसर से 13006 है।

आजादी के बाद पंजाब मेल अमृतसर से हावड़ा तक 1901 किमी की दूरी तय करती है। हावड़ा - अमृतसर मेन रूट पर चलने वाली पंजाब मेल सबसे पुरानी ट्रेन है जो अमृतसर से हावड़ा के बीच 57 स्टेशनों पर रुकती है। यह ट्रेन पंजाब,यूपी, बिहार के प्रमुख स्टेशनों पर ठहरती है। आज भी पंजाब,उत्तर प्रदेश, बिहार के लोगों के लिए पंजाब मेल ट्रेन बेहद अहम है। जंघई- बादशाहपुर- प्रतापगढ़ रेल रूट पर दिन में ट्रेन की आवाज सुनकर लोग बता देते हैं कि पंजाब मेल ट्रेन गुजरी है।

*1980 में बादशाहपुर स्टेशन पर पंजाब मेल का शुरू हुआ था ठहराव*

110वें वर्ष की यात्रा पूरी करने वाली पंजाब मेल ट्रेन का बादशाहपुर रेलवे स्टेशन पर वर्ष 1980 में ठहराव शुरू हुआ था। वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव के बाद कमलापति त्रिपाठी के दोबारा रेलमंत्री बनने बाद मुंगराबादशाहपुर वासियों के मांग बादशाहपुर रेलवे पर ठहराव शुरू हुआ था।

*समय के अनुसार पंजाब मेल में होता गया बदलाव*

एक जून 1912 से लाहौर- हावड़ा कलकत्ता मेल भाप इंजन के जरिए चलाया गया तब इसे कलकत्ता मेल के नाम से जाना जाता था लकड़ी वाले कोचों से चलती थी। गाड़ी में छह डिब्बे होते थे। इनमें से तीन सवारी, तीन डाक के लिए होते थे। इसमें 96 यात्रियों को ले जाने की क्षमता थी। गाड़ी के हर डिब्बे में दो शयिकाएं होतीं थीं। उच्च श्रेणी के यात्रियों के लिए बनीं इन शयिकाओं में खानपान, शौचालय, स्नानघर की व्यवस्था होती थी। गाड़ी में अंग्रेजों के सामान और उनके नौकरों के लिए अलग डिब्बे की व्यवस्था होती थी। देश में नियुक्ति पर आने वाले अंग्रेज अधिकारी लाहौर पहुंचने के बाद इसी गाड़ी से अपने तैनाती स्थलों तक जाते थे। लेकिन 1930 में इसमें आम जनता के लिए भी तृतीय श्रेणी का डिब्बे जोड़े गए। वर्ष 1945 में वातानुकूलित डिब्बा जोड़ा गया।
वर्ष 1976 में स्टीम इंजन से चलने वाली पंजाब मेल में डीजल इंजन जोड़ा गया। नब्बे के दशक में इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव के जरिए हावड़ा से मुगलसराय तक चलाया गया और मुगलसराय से अमृतसर तक डीजल लोकोमोटिव से चलाया जाने लगा। वर्ष 2019 के दिसंबर में यह ट्रेन एचएलबी कोच के साथ पंजाब मेल चलने लगी। वर्ष 2021 से हावड़ा से अमृतसर इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव से चलने लगा।

*20 दिसंबर 1928 को भगत सिंह ने पकड़ी पंजाब मेल*

आज हम जिस ट्रेन को अमृतसर-हावड़ा पंजाब मेल के नाम से जानते हैं। तब यह ट्रेन लाहौर-हावड़ा कलकता मेल के नाम से जानी जाती थी। सांडर्स हत्‍या के बाद भगत सिंह, राजगुरु और हत्‍या का पूरी पटकथा तैयार करने वाले चंद्रशेखर आजाद दुर्गा भाभी के साथ 20 दिसंबर 1928 को लाहौर से कलकता मेल पकड़ कर अमृतसर के रास्‍ते वेश बदल कर लखनऊ चल पड़े।

*लाहौर घटना के बाद भगत सिंह कटाई थी केस*

किसी गुरु सिख के लिए उसकी केस और पगड़ी जान से भी प्‍यारी होती है। लेकिन, देश के लिए भगत सिंह अपना केस और पगड़ी दोनो कुर्बान कर दिया। सांडर्स को गोली मारते वक्‍त जिन्‍हों जिन दो युवकों को देखा था उनके एक युवक पगड़ी धारी और दूसरा हिंदू। लाहौर पुलिस को पगड़गीधारी सिख की तलाश थी। सो चंद्रशेखर आजा और दुर्गा भाभी के सलाह पर भगत सिंह ने अपने केस भारत मां की आजादी के लिए कुर्बान कर दी। और यही से भगत सिंह हैट और लंबी कोट वाले साहब व दुर्गाभाभी अपने छोटे बच्‍चे सचिंद्र को साथ ले उनकी पत्‍नी बन लाहौर-कलकता मेल जो अब अमृतसर हावड़ा मेल के नाम से जानी जाती है में सवार हो गए।

*लखनऊ में छोड़ी कलकत्ता मेल ,कानपुर से पकड़ी कालका मेल* 

रेलवे अभिलेखागार से मिली जानकारी के मुताबिक भगत सिंह, दुर्गा भाभी और और उनका नौकरे बने सुखदेख ये तीनों ही लखनऊ रेलवे स्‍टेशन पर उतरे। यहां उन्‍होंने बच्‍चे के लिए दूध लिया। जबकि, साधु बने चंद्रशेखर आजाद लाहौर - हावड़ा कलकता मेल से उतर कर पानी पिया। और इसी लखनऊ रेलवे स्‍टेशन से इन चारों क्रांतिकारियों ने कानपुर से कलकत्ता जाने वाली ट्रेन कालका मेल पकड़ी और कलकता पहुंच गए। जबकि पुलिस लाहौर से आने वाली कलकता मेल में इन क्रांतिकारियों को तलाशती रही।

94 साल पहले जिस ट्रेन शहीद-ए-आजम भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे महान क्रांतिकारियों को लाहौर से लखनऊ पहुंचाई थी। वह ट्रेन आज भी चल उसी रुट पर चल रही है। हां उसमें इतना बदलाव जरूर हुआ है कि देश के बटवारे के बाद अब यह ट्रेन लाहौर की बजाय अमृतसर से कलकता के लिए हर शाम छह बजे चलती है। समय के साथ-साथ इसका नाम भी कलकता मेल से बदल कर अमृतसर हाबड़ा पंजाब मेल हो गया है।

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